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दिल जिस से काँपता है वो साअत भी आएगी | शाही शायरी
dil jis se kanpta hai wo saat bhi aaegi

ग़ज़ल

दिल जिस से काँपता है वो साअत भी आएगी

राशिद मुफ़्ती

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दिल जिस से काँपता है वो साअत भी आएगी
वो आएगा तो कोई मुसीबत भी आएगी

मैं आज तेरी राह का पत्थर सही मगर
कल तुझ को पेश मेरी ज़रूरत भी आएगी

झेले हैं अपनी जान पे हम ने वो हादसे
दिल मानता नहीं कि क़यामत भी आएगी

उस की कशीदगी का सबब कुछ भी हो मगर
मुझ को गुमाँ न था कि ये नौबत भी आएगी

ऐ रह-नवर्द साया-ए-अश्जार ही नहीं
कुछ तेरे काम धूप की हिद्दत भी आएगी

क्या फ़ाएदा जो अपनी सफ़ाई में कुछ कहूँ
मैं जानता था मुझ पे ये तोहमत भी आएगी