EN اردو
दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए | शाही शायरी
dil jalaya teri KHushi ke liye

ग़ज़ल

दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए

परवीन फ़ना सय्यद

;

दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए
या ख़ुद अपनी ही आगही के लिए

हाथ पर रख के अपनी रूह-ए-तपाँ
हम चले अपनी रहबरी के लिए

नूर की महफ़िलों में रहते हैं
जो तरसते हैं रौशनी के लिए

कितने आलाम सह गए हम लोग
एक बे-नाम सी हँसी के लिए

आब-ए-हैवाँ भी गर मिले तो न लें
अपने मेआ'र-ए-तिश्नगी के लिए

फिर कोई क़हर हज़रत-ए-यज़्दाँ
कोई तहरीक बंदगी के लिए