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दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था | शाही शायरी
dil ishq-e-KHush-qadan mein jo KHwahan-e-nala tha

ग़ज़ल

दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था

शाह नसीर

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दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था
दीवाना-वार सिलसिला-जुम्बान-ए-नाला था

नाले से मेरे क्या है हवाई को हम-सरी
तीर-ए-शहाब रात को क़ुर्बान-ए-नाला था

ढूँडूँ न क्यूँकि दिल को मैं ऐ अाहुवान-ए-दश्त
सीने में वो तो शेर-ए-नियस्तान-ए-नाला था

करता था जिन दिनों ये फ़लक हम से सर-कशी
नावक-ज़नी का आह से पैमान-ए-नाला था

इश्क़-ए-बुताँ था दिल से जो दम-साज़ मिस्ल-ए-नय
हर दम असर में ताबा-ए-फ़रमान-ए-नाला था

सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम
मुर्ग़-ए-क़फ़स के सर पे ये एहसान-ए-नाला था

गाड़े फ़लक पे क्या ये दिल-ए-ना-तवाँ अलम
वो दिन गए जो औज-ए-फ़रावान-ए-नाला था

कल शब को ज़िक्र था जो किसी नेज़ा-बाज़ का
आशिक़ का तेरे चर्ख़ सना-ख़्वान-ए-नाला था

यारों के क़ाफ़िले की मुझे जब कि याद थी
सीने में जूँ जरस मिरे सामान-ए-नाला था

मत पूछ वारदात-ए-शब-ए-हिज्र ऐ 'नसीर'
मैं क्या कहूँ जो कार-ए-नुमायान-ए-नाला था

लेने को अख़्तरान-ए-फ़लक से ख़िराज-ओ-बाज
हर आन शोला-ओ-शरर-अफ़शान-ए-नाला था