दिल इस लिए है दोस्त कि दिल में है जा-ए-दोस्त
जब ये न हो बग़ल में है दुश्मन बजाए दोस्त
मिटने की आरज़ू है इसी रहगुज़ार में
इतने मिटे कि लोग कहें ख़ाक-ए-पा-ए-दोस्त
तक़रीर का है ख़ास अदा-ए-बयाँ में लुत्फ़
सुनिए मिरी ज़बान से कुछ माजरा-ए-दोस्त
सब कुछ है और कुछ नहीं आलम की काएनात
दुनिया बराए दोस्त है उक़्बा बराए दोस्त
ग़ज़ल
दिल इस लिए है दोस्त कि दिल में है जा-ए-दोस्त
हफ़ीज़ जौनपुरी