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दिल हो हस्सास तो जीने में बहुत घाटा है | शाही शायरी
dil ho hassas to jine mein bahut ghaTa hai

ग़ज़ल

दिल हो हस्सास तो जीने में बहुत घाटा है

मुज़फ़्फ़र वारसी

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दिल हो हस्सास तो जीने में बहुत घाटा है
मैं ने ख़ुद अपने ही ज़ख़्मों का लहू चाटा है

मुझ पे एहसाँ है मिरी तेशा-ब-कफ़ साँसों का
ज़िंदगी तुझ को पहाड़ों की तरह काटा है

डूब कर देख समुंदर हूँ मैं आवाज़ों का
तालिब-ए-हुस्न-ए-समाअत मिरा सन्नाटा है

मैं चटानों की तरह जिन की कमीं-गाह बना
रफ़्ता रफ़्ता उन्हीं लहरों ने मुझे चाटा है

मर चुका हूँ मैं कई बार जहाँ के हाथों
अपनी लाशों से 'मुज़फ़्फ़र' ये कुआँ पाटा है