दिल हो गया है ग़म से तिरे दाग़दार ख़ूब
फूला है क्या ही जोश से ये लाला-ज़ार ख़ूब
कब तक रहूँ हिजाब में महरूम वस्ल से
जी में है कीजे प्यार से बोस-ओ-कनार ख़ूब
साक़ी लगा के बर्फ़ में मय की सुराही ला
आँखों में छा रहा है नशे का ख़ुमार ख़ूब
आया न एक दिन भी तू वादा पे रात को
अच्छा किया सुलूक तग़ाफ़ुल-शिआर ख़ूब
ऐसी हवा बंधी रहे 'चंदा' की या अली
बा-सद-बहार देखे जहाँ की बहार ख़ूब
ग़ज़ल
दिल हो गया है ग़म से तिरे दाग़दार ख़ूब
मह लक़ा चंदा