दिल ही सही समझाने वाला
कोई तो है ग़म खाने वाला
दिल के क्या क्या तौर थे लेकिन
फूल था इक मुरझाने वाला
हिज्र की शब है और मिरा दिल
शाम ही से घबराने वाला
डूब चले तारे भी अब तो
कब आएगा आने वाला
दिल की लगी दिल वाला जाने
क्या समझे समझाने वाला
रोइए लाख 'ज़का' अब दिल को
कब आया है जाने वाला
ग़ज़ल
दिल ही सही समझाने वाला
ज़का सिद्दीक़ी