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दिल ही नहीं तो दिल के सहारों को क्या करूँ | शाही शायरी
dil hi nahin to dil ke sahaaron ko kya karun

ग़ज़ल

दिल ही नहीं तो दिल के सहारों को क्या करूँ

नूर इंदौरी

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दिल ही नहीं तो दिल के सहारों को क्या करूँ
जब पास तुम नहीं तो बहारों को क्या करूँ

जल्वों से जिस के चाँद सितारों में थी ज़िया
अब वो हसीं नहीं तो सितारों को क्या करूँ

तस्वीर और तसव्वुर-ए-जानाँ ये सब फ़रेब
मैं उन से दूर उन के नज़ारों को क्या करूँ

गो जन्नत-ए-निगाह हों फ़िर्दोस-ए-रंग हों
गुज़री हुई हसीन बहारों को क्या करूँ

ख़्वाबों से 'नूर' छीन लिया है ख़याल-ए-यार
तेरे बग़ैर तेरे इशारों को क्या करूँ