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दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का | शाही शायरी
dil hi mera faqat hai matlab ka

ग़ज़ल

दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का

सख़ी लख़नवी

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दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
या जिगर भी है आप के ढब का

क़ैस ओ फ़रहाद से मैं हूँ वाक़िफ़
हो चुका है मुक़ाबला सब का

खाई है इक नई मिठाई आज
बोसा पाया है यार के लब का

मय-कदे में शराब पीते हैं
ये पता है हमारे मशरब का

शीआ सुन्नी में तो बखेड़े हैं
नाम लूँ किस के आगे मज़हब का

मलक-उल-मौत से कहो फिर जाएँ
जीते-जी मर चुका हूँ मैं कब का

आप फ़रमाएँ हिज्र का अहवाल
मैं करूँ ज़िक्र वस्ल की शब का

सुब्ह को झोंके नींद के कैसे
कहीं जागा हुआ है तू शब का

उस के कूचा की भीक चाहते हैं
शौक़ जागीर का न मंसब का

रहे दिन भर वो मुद्दई मेरे
याद कर के मुआमला शब का

बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
तुझ में है ढंग यार के लब का

नक़्द-ए-दिल देता हूँ तो कहते हैं
वाह ऐसा 'सख़ी' है तू कब का