दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
वर्ना क्या ज़ुल्म नहीं कौन सी बेदाद नहीं
हुस्न इक शान-ए-इलाही है मगर ऐ बे-मेहर
बेवफ़ाई तो कोई हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद नहीं
सर-ए-तुर्बत वो ख़मोशी पे मिरी कहते हैं
मरने वाले तुझे पैमान-ए-वफ़ा याद नहीं
हुस्न-ए-आरास्ता क़ुदरत का अतिय्या है मगर
क्या मिरा इश्क़-ए-जिगर-सोज़ ख़ुदा-दाद नहीं
लाख पाबंद-ए-अलाएक न रहे कोई यहाँ
तब-ए-वारस्ता मगर फ़िक्र से आज़ाद नहीं
बाहम आईन-ए-वफ़ा रस्म-ए-मोहब्बत कैसी
वक़्त अब वो है कि बंदों को ख़ुदा याद नहीं
चश्म-ए-मख़मूर वो है काबिल-ए-ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब
दफ़्तर-ए-इश्क़ पे जब तक कि मिरे साद नहीं
पूछते क्या हो तबाही का फ़साना मुझ से
दिल-ए-बर्बाद की सूरत भी मुझे याद नहीं
ज़र्रे ज़र्रे में है इक आलम-ए-म'नी पिन्हाँ
ख़ाक-ए-बर्बाद को समझे हो कि आबाद नहीं
आप कहते हैं कि है गोर-ए-ग़रीबाँ वीराँ
ऐसी बस्ती तो जहाँ में कोई आबाद नहीं
आँसुओं को भी ज़रा देख ले रोने वाले
इन सितारों में तो दुनिया कोई आबाद नहीं
हुस्न-ए-ख़ुद मैं ने किए आइने के सौ टुकड़े
अब न कहना कि निगाहें सितम-ईजाद नहीं
कब ख़यालात पे मुमकिन है किसी का पहरा
दिल तो आज़ाद रहा मैं अगर आज़ाद नहीं
सीना-कावी के लिए शर्त है दिल की हिम्मत
नाख़ुन-ए-दस्त-ए-जुनूँ तेशा-ए-फ़रहाद नहीं
बे-ख़ुदी मंज़िल-ए-इरफ़ाँ है ज़रा होश में आ
है ख़ुदी का ये नतीजा कि ख़ुदा याद नहीं
तबक़ा-ए-ख़ाक में है आलम-ए-ख़ामोश-आबाद
जिस को बर्बाद समझते हो वो बर्बाद नहीं
दिल-ए-वीराँ की तबाही की कोई हद है 'अज़ीज़'
मैं समझता हूँ कि दुनिया अभी आबाद नहीं
ग़ज़ल
दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
अज़ीज़ लखनवी