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दिल है वीरान बयाबाँ की तरह | शाही शायरी
dil hai viran bayaban ki tarah

ग़ज़ल

दिल है वीरान बयाबाँ की तरह

अमीक़ हनफ़ी

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दिल है वीरान बयाबाँ की तरह
गोशा-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ की तरह

हाए वो जिस्म तह-ए-ख़ाक है आज
जिस ने रक्खा था हमें जाँ की तरह

साहब-ए-ख़ाना समझते थे जिसे
चल दिया घर से वो मेहमाँ की तरह

चाँद सूरज का गुमाँ था जिस पर
बुझ गया शम-ए-शबिस्ताँ की तरह

साया-ए-आतिफ़त अब सर पे नहीं
साया-ए-अब्र-ए-गुरेज़ाँ की तरह

है अगर अपना मुक़द्दर भी तो है
तंग बस तंगी-ए-दामाँ की तरह