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दिल है कि जुस्तुजू के सराबों में क़ैद है | शाही शायरी
dil hai ki justuju ke sarabon mein qaid hai

ग़ज़ल

दिल है कि जुस्तुजू के सराबों में क़ैद है

मासूम शर्क़ी

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दिल है कि जुस्तुजू के सराबों में क़ैद है
वर्ना हर एक चेहरा नक़ाबों में क़ैद है

फ़ुर्सत कहाँ कि ढूँडे ग़म-ए-दहर का इलाज
हर शख़्स अपने ग़म के हिसाबों में क़ैद है

क्या ख़ाक हों नसीब यहाँ सर बुलंदियाँ
जोश-ए-अमल तो आज किताबों में क़ैद है

तस्ख़ीर-ए-काएनात की मोहलत किसे यहाँ
हर ज़ेहन अपने जुमला हिसाबों में क़ैद है

सूने पड़े हैं दिल के दर-ओ-बाम इन दिनों
जल्वों का एहतिमाम हिजाबों में क़ैद है

ले दे के बच रही है जो तहज़ीब की ज़बाँ
'मासूम' वो भी आली-जनाबों में क़ैद है