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दिल है कि हमें फिर से उधर ले के चला है | शाही शायरी
dil hai ki hamein phir se udhar le ke chala hai

ग़ज़ल

दिल है कि हमें फिर से उधर ले के चला है

अासिफ़ जमाल

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दिल है कि हमें फिर से उधर ले के चला है
उम्मीद से फिर रिश्ता-ए-जाँ बाँध लिया है

आहट पे न चौंको कि न आएगी यहाँ मौत
दस्तक पे न जाओ कि ये आवारा हुआ है

अब संग मुदावा नहीं आशुफ़्ता-सरी का
याँ संग से भी फोड़ के सर देख लिया है

क्या कीजिए हर काविश-ए-दरमाँ हुई महदूद
हर जादा-ए-इमकाँ है कि मसदूद हुआ है

ज़िंदा हैं बहर-तौर कि मरना नहीं बस में
ता-उम्र हमारे लिए जीने की सज़ा है

ऐ दिल कभी पत्थर भी कहीं मोम हुए हैं
जो ख़्वाब में देखा है कहीं सच भी हुआ है