EN اردو
दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें | शाही शायरी
dil hai aur KHud nagri zauq-e-dua jis ko kahen

ग़ज़ल

दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें

इज्तिबा रिज़वी

;

दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें
बे-ख़ुदी चाहिए हम को कि ख़ुदा जिस को कहें

हम से आबाद है दुनिया-ए-तसव्वुर तो क्या
कि नहीं एक वो तस्वीर ख़ुदा जिस को कहें

जुरअत-ए-शौक़ है कहते हैं मोहब्बत जिस को
उसी जुरअत पे है इसरार-ए-वफ़ा जिस को कहें

समझ ऐ दोस्त उसे ज़र्ब-ए-नज़र की आवाज़
हम कभी दिल के धड़कने की सदा जिस को कहें

क़ुल्ज़ुम-ए-दिल न हुआ आईना-सामाँ ऐ दोस्त
अभी आ जाती है इक मौज-ए-दुआ जिस को कहें

है तिरे कीसा-ए-पिंदार में ऐसी कोई चीज़
दिल की बेताब मोहब्बत का सिला जिस को कहें