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दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश | शाही शायरी
dil hai apna na ab jigar dar-pesh

ग़ज़ल

दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश

रहमान जामी

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दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश
है तिरी चश्म-ए-मो'तबर दर-पेश

लोग बीमार क्यूँ न पड़ जाते
जब कि था हुस्न-ए-चारा-गर दर-पेश

मैं हुआ चाहता था बे-क़ाबू
ज़िंदगी हो गई मगर दर-पेश

बात कहनी है और इस में भी
लफ़्ज़-ओ-मा'नी का है सफ़र दर-पेश

अहल-ए-नक़्द-ओ-नज़र परेशाँ हैं
जब से 'जामी' का है हुनर दर-पेश