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दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात | शाही शायरी
dil hai aaina-e-hairat se do-chaar aaj ki raat

ग़ज़ल

दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात

सय्यद आबिद अली आबिद

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दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात
ग़म-ए-दौराँ में है अक्स-ए-ग़म-ए-यार आज की रात

कोई मंसूर से जा कर ये कहो हम-नफ़सो
हूँ ब-ताज़ीर-ए-ख़मोशी सर-ए-दार आज की रात

ग़म के मेहवर पे हैं ठहरे हुए अफ़्लाक-ओ-नुजूम
मेरी महफ़िल में नहीं वक़्त को बार आज की रात

न मकाँ आज है साबित न ज़माँ है सय्यार
न ख़िज़ाँ शो'बदा-आरा न बहार आज की रात

कभी फ़िरदौस-ए-गुल-ओ-लाला थी जो किश्त-ए-ख़याल
उस से बे-साख़्ता उगते हैं शरार आज की रात

बू-ए-ख़ूँ आती है सहरा-ए-तमन्ना से मुझे
खेलता हूँ दिल-ए-वहशी का शिकार आज की रात

तुझे मालूम है 'आबिद' कि बयाज़ दिल पर
नाख़ुन-ए-ग़म ने किए नक़्श-ओ-निगार आज की रात