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दिल गया बे-क़रारियाँ न गईं | शाही शायरी
dil gaya be-qarariyan na gain

ग़ज़ल

दिल गया बे-क़रारियाँ न गईं

असर लखनवी

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दिल गया बे-क़रारियाँ न गईं
इश्क़ की ख़ाम-कारियाँ न गईं

मर मिटे नाम पर वफ़ा के हम
तेरी बे-ए'तिबारियाँ न गईं

लब पे आया न उस का नाम कभी
ग़म की परहेज़-गारियाँ न गईं

खप गई जान बुझ गए तेवर
अश्क की ताबदारियाँ न गईं

तौबा करने को हम ने की तो मगर
तौबा की शर्मसारियाँ न गईं

जान आ ही गई लबों पे मगर
शौक़ की पर्दा-दारियाँ न गईं

वो है कीना कि सर्द-मेहरी है
अपनी जानिब से यारियाँ न गईं

गिर्या भी है 'असर' का मस्ताना
न गईं बादा-ख़्वारियाँ न गईं