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दिल-ए-वहशी तुझे इक बार फिर ज़ंजीर करना है | शाही शायरी
dil-e-wahshi tujhe ek bar phir zanjir karna hai

ग़ज़ल

दिल-ए-वहशी तुझे इक बार फिर ज़ंजीर करना है

असअ'द बदायुनी

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दिल-ए-वहशी तुझे इक बार फिर ज़ंजीर करना है
कि अब इस से मुलाक़ातों में कुछ ताख़ीर करना है

मिरे पिछले बहाने उस पे रौशन होते जाते हैं
सो अब मुझ को नया हीला नई तदबीर करना है

कमाँ-दारों को इस से क्या ग़रज़ पहुँचे कि रह जाए
उन्हें तो बस इशारे पर रवाना तीर करना है

अभी इम्कान के सफ़्हे बहुत ख़ाली हैं दुनिया में
मुझे भी एक नौहा जा-ब-जा तहरीर करना है