दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं
अब करम भी गराँ न हो जाए
तेरे बीमार का ख़ुदा-हाफ़िज़
नज़्र-ए-चारा-गराँ न हो जाए
इश्क़ क्या क्या न आफ़तें ढाए
हुस्न गर मेहरबाँ न हो जाए
मय के आगे ग़मों का कोह-ए-गिराँ
एक पल में धुआँ न हो जाए
फिर 'मजाज़' इन दिनों ये ख़तरा है
दिल हलाक-ए-बुताँ न हो जाए
ग़ज़ल
दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़