EN اردو
दिल-ए-हज़ीं को तमन्ना है मुस्कुराने की | शाही शायरी
dil-e-hazin ko tamanna hai muskurane ki

ग़ज़ल

दिल-ए-हज़ीं को तमन्ना है मुस्कुराने की

मज़हर इमाम

;

दिल-ए-हज़ीं को तमन्ना है मुस्कुराने की
ये रुत ख़ुशी की है या रीत है ज़माने की

बना गईं उसे पेचीदा नित-नई शरहें
खुली हुई थी हक़ीक़त मिरे फ़साने की

हरम के पास पहुँचते ही थक के बैठ गए
वगरना राह तो ली थी शराब-ख़ाने की

किसी के साया-ए-गेसू की बात छिड़ती है
मिरे क़रीब रहें गर्दिशें ज़माने की

मैं तेरे ग़म का भी थोड़ा सा जाएज़ा ले लूँ
कभी मिले मुझे फ़ुर्सत जो मुस्कुराने की

समेट लें मह ओ ख़ुर्शीद रौशनी अपनी
सलाहियत है ज़मीं में भी जगमगाने की

भला 'इमाम' तहज्जुद गुज़ार क्या जानें
कि रात कितनी हसीं है शराब-ख़ाने की