दिल-ए-फ़सुर्दा को अब ताक़त-ए-क़रार नहीं
निगाह-ए-शौक़ को अब ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
नहीं नहीं मुझे बर्दाश्त अब नहीं की नहीं
ख़ुदा के वास्ते कहना न अब की बार नहीं
हमेशा वा'दे किए अब के मिल ही जा आ कर
हयात-ओ-वा'दा-ओ-दुनिया का ए'तिबार नहीं
दिखाती अपनी मोहब्बत को चीर कर सीना
मगर नुमूद मिरा शेवा-ओ-शिआर नहीं
मिरी बहन मिरी महबूबा ये अजब शय है
जहाँ में ख़ाक नहीं कुछ जो दोस्त-वार नहीं
ग़ज़ल
दिल-ए-फ़सुर्दा को अब ताक़त-ए-क़रार नहीं
ज़ाहिदा ज़ैदी