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दिल-ए-दरवेश की दुआ से उठा | शाही शायरी
dil-e-durwesh ki dua se uTha

ग़ज़ल

दिल-ए-दरवेश की दुआ से उठा

नईम रज़ा भट्टी

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दिल-ए-दरवेश की दुआ से उठा
ये हयूला सा जो हवा से उठा

जिस्म उलझा मगर थकन उतरी
पर जो इक कर्ब नहरवा से उठा

नश्शा-ए-ख़्वाब बअ'द में उतरा
पहले ख़ुशनूदी-ए-वला से उठा

शहर-ए-सर-मस्त में शफ़क़ उतरी
और मंज़र कोई वरा से उठा

इस को मैं इंक़लाब कहता हूँ
ये जो इंकार की फ़ज़ा से उठा