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दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू | शाही शायरी
dil-e-be-iKHtiyar ki KHushbu

ग़ज़ल

दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू

नितिन नायाब

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दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू
उस पर इस इंतिज़ार की ख़ुश्बू

इस फटे आसमाँ की बाइ'स है
हम से सीना-फ़िगार की ख़ुश्बू

इतना बे-सब्र चाक सीना है
सूँघ लेता है तार की ख़ुश्बू

मख़मली पैरहन से आती है
दामन-ए-तार-तार की ख़ुश्बू

कब तमाम-उम्र साथ रहती है
ज़ो'म-ए-ना-पाएदार की ख़ुश्बू

बूए-ए-मंज़िल में घुल ही जाएगी
ये मिरे पा-ए-ख़ार की ख़ुश्बू

खो गई दौर-ए-हिज्र में 'नायाब'
मेरे लैल-ओ-नहार की ख़ुश्बू