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दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा | शाही शायरी
dil-e-barbaad ko chhoTa sa makan bhi dega

ग़ज़ल

दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा

एहतिशाम अख्तर

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दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा
जब नया ज़ख़्म भरेगा तो निशाँ भी देगा

पहले गुज़रूँगा मैं उम्मीद ओ यक़ीं की रह से
फिर तिरा प्यार मुझे वहम-ओ-गुमाँ भी देगा

पैकर-ए-रंग जो पल भर में बिखर जाएगा
जागती आँखों को ख़्वाबों का जहाँ भी देगा

तुम जलाना मुझे चाहो तो जला दो लेकिन
नख़्ल-ए-ताज़ा जो जलेगा तो धुआँ भी देगा

वक़्त देता है जिन्हें आज खिलौने 'अख़्तर'
उन्हीं अतफ़ाल को कल तीर-ओ-सिनाँ भी देगा