EN اردو
दिल दिया जी दिया ख़फ़ा न किया | शाही शायरी
dil diya ji diya KHafa na kiya

ग़ज़ल

दिल दिया जी दिया ख़फ़ा न किया

आसिफ़ुद्दौला

;

दिल दिया जी दिया ख़फ़ा न किया
बेवफ़ा तुझ से से मैं ने क्या न किया

ग़म-ए-दूरी को तेरी देख के यार
आज तक जान से जुदा न किया

फ़ाएदा क्या है अब बिगड़ने का
कौन था जिस से तू मिला न किया

ये हमीं थे कि इन जफ़ाओं पर
फिर कभी तुझ सती गिला न किया

कौन सी शब थी हिज्र की 'आसिफ़'
कि ये दिल शम्अ साँ जला न किया