दिल दिल ही रहेगा गुल-ए-तर हो नहीं सकता
ख़ूँ हो के भी मंज़ूर-ए-नज़र हो नहीं सकता
जो ज़ुल्म किया तू ने किया बे-जिगरी से
ऐसा तो किसी का भी जिगर हो नहीं सकता
थक थक के तिरी राह में यूँ बैठ गया हूँ
गोया कि बस अब मुझ से सफ़र हो नहीं सकता
इज़हार-ए-मोहब्बत मिरे आँसू ही करेंगे
इज़हार ब-अंदाज़-ए-दिगर हो नहीं सकता
हर बूँद लहू की कभी बनती नहीं आँसू
जैसे कि हर इक क़तरा गुहर हो नहीं सकता
ये अहद-ए-जवानी भी है कुछ ऐसा ज़माना
बे-बादा-ए-सरजोश बसर हो नहीं सकता
ले जाएगा ये दिल मुझे उस बज़्म में आख़िर
जिस में कि सबा का भी गुज़र हो नहीं सकता
जब तक तिरी रहमत का है 'कशफ़ी' को सहारा
सच ये है गुनाहों से हज़र हो नहीं सकता
ग़ज़ल
दिल दिल ही रहेगा गुल-ए-तर हो नहीं सकता
कशफ़ी मुल्तानी