दिल ढूँढती है निगह किसी की
आईने की है न आरसी की
मालिक मिरे मैं ने मय-कशी की
लेकिन ये ख़ता कभी कभी की
क्या शक्ल है वस्ल में किसी की
तस्वीर हैं अपनी बेबसी की
खुल जाए सबा की पाक-बाज़ी
बू फूटे जो बाग़ में कली की
कम-बख़्त कभी न ख़ुश हुआ तू
ऐ ग़म तिरी हर तरह ख़ुशी की
मुँह हम ने हँसी हँसी में चूमा
जो हो गई बात थी हँसी की
ताना सा तना है मय-कदे में
पगड़ी उछली है शैख़-जी की
हम को जो दिया तो और का दिल
दिल ले के ये अच्छी दिल-लगी की
यूँ भी तो चला न काम अपना
दुश्मन से भी हम ने दोस्ती की
पाए गए जिस में दिल के अज्ज़ा
होगी वो ख़ाक उसी गली की
ऐसी है कि पी सकेगा वाइ'ज़
है ताज़ा कशीद आज ही की
मय ख़ुल्द में होगी सूरत-ए-हूर
मयख़ाने में मुश्किल है परी की
घर है न कहीं निशाँ लहद का
मिट्टी है ख़राब बे-कसी की
सच ये है कि ज़िंदगी हो या मौत
हर चीज़ बुरी है मुफ़लिसी की
अच्छी है गर्क़ से तल्ख़ मय से
मिलती रहे रोज़ रूखी-फीकी
कुछ कुछ है 'रियाज़' 'मीर' का रंग
कुछ शान है हम में 'मुसहफ़ी' की

ग़ज़ल
दिल ढूँढती है निगह किसी की
रियाज़ ख़ैराबादी