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दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं | शाही शायरी
dil dekh rahe hain wo jigar dekh rahe hain

ग़ज़ल

दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं

ज़हीर अहमद ताज

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दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं
छोड़े हुए तीरों का असर देख रहे हैं

हर रोज़ जफ़ाएँ हैं नई और नया ग़म
सौ सौ तरह आशिक़ का जिगर देख रहे हैं

हर लम्हा ज़माने का है हंगामा-ब-दामन
पैदा है क़यामत का असर देख रहे हैं

ऐ गर्दिश-ए-दौराँ तिरे जाँ-सोज़ नज़ारे
देखे नहीं जाते हैं मगर देख रहे हैं

हम मय-कदे में जा के हुए तिश्ना ज़ियादा
बदली हुई साक़ी की नज़र देख रहे हैं

आशोब का ऐ 'ताज' है ये हाल कि हर रोज़
मिलते हुए मिट्टी में गुहर देख रहे हैं