दिल दश्त है वफ़ूर-ए-तमन्ना ग़ुबार है 
ऐ अब्र-ए-नौ-उमीद तिरा इंतिज़ार है 
फिर उस्तुवार राब्ता-ए-संग-ओ-सर हुआ 
फिर इन दिनों जुनूँ को हवा साज़गार है 
जाँ-दादगी की रस्म जगाओ कि आज-कल 
फिर मुल्तफ़ित हवा-ए-सर-ए-रह-गुज़ार है 
हर निकहत-ए-ख़याल असीर-ए-हवा हुई 
हर मौज-ए-नूर कम-निगही की शिकार है 
रौशन-ज़मीर तीरा-नसीबी ख़ुदा की शान 
इतनी सी अब हिकायत लैल-ओ-नहार है 
हाँ ऐ हवा-ए-दश्त इधर शहर में भी आ 
महबूस कब से निकहत-ए-गेसू-ए-यार है 
कहिए तो किस तरह जो न कहिए तो किस तरह 
अर्ज़-ए-सुख़न में लफ़्ज़ भी बे-ए'तिबार है 
लब-बस्ता दिल-ए-कुशादा चमन में गुज़ारिए 
ये ग़ुन्चग़ी की रस्म गुलों का शिआ'र है 
'बाक़र' ग़ज़ल में रम्ज़-ओ-किनाया बजा मगर 
ये एहतियात हर्फ़-ए-तमन्ना पे बार है
        ग़ज़ल
दिल दश्त है वफ़ूर-ए-तमन्ना ग़ुबार है
सज्जाद बाक़र रिज़वी

