दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
सैलाब-ए-अश्क-ओ-आह पे बुनियाद क्या करें
करना है बन को ताज़ा निहालों की देख भाल
बीती हुई बहार को वो याद क्या करें
हाँ जान कर उमीद की मद्धम रखी है लौ
अब और पास-ए-ख़ातिर-ए-नाशाद क्या करें
संगीं हक़ीक़तों से कहाँ तक मलूल हों
रानाई-ए-ख़याल को बरबाद क्या करें
देखो जिसे लिए है वो ज़ख़्मों की काएनात
हम एक अपने ज़ख़्म पे फ़रियाद क्या करें
रिंदों की आरज़ू का तलातुम कहाँ से लाएँ
आसूदगान-ए-मसनद-ए-इरशाद क्या करें
किस को नहीं सुकून की ख़्वाहिश जहान में
उफ़्तादगान-ए-रहगुज़र-ए-बाद क्या करें
जो हर नज़र में ताज़ा करें मय-कदे हज़ार
सच है 'सुरूर'-ए-रफ़्ता को वो याद क्या करें
ग़ज़ल
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
आल-ए-अहमद सूरूर