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दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए | शाही शायरी
dil ba-az-kaba hai yaran jubba-sai chahiye

ग़ज़ल

दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

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दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए
है ख़ुदा का घर यही लेकिन सफ़ाई चाहिए

दाद-ए-हक़ देखा तो मुतलक़ नीं है मुहताज-ए-सवाल
है वहाँ बख़्शिश ही बख़्शिश बे-नवाई चाहिए

यार की ना-मेहरबानी पर न कीजे कुछ ख़याल
जो हैं महबूब उन के तईं बे-ए'तिनाई चाहिए

अपने ही घर में ख़ुदाई है जो कोई समझे 'हुज़ूर'
हाँ मगर क़ैद-ए-ख़ुदी से टुक रिहाई चाहिए