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दिल अपना हरीफ़-ए-सैल-ए-बला अब क्या कहें कितना टूट गया | शाही शायरी
dil apna harif-e-saill-e-bala ab kya kahen kitna TuT gaya

ग़ज़ल

दिल अपना हरीफ़-ए-सैल-ए-बला अब क्या कहें कितना टूट गया

महशर बदायुनी

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दिल अपना हरीफ़-ए-सैल-ए-बला अब क्या कहें कितना टूट गया
आज और थपेड़े टकराए आज और किनारा टूट गया

पैकार ही जिन का शेवा हो वो तुंद हवाएँ क्या समझें
गुलज़ार तो हम पर तंग हुआ बाज़ू तो हमारा टूट गया

मिट्टी से ख़्वाब तराशा था सो उस की ये ताबीर मिली
अब आधा घरौंदा बाक़ी है और आधा घरौंदा टूट गया

घर भी वही घर वाले भी वही पर क्या लगे इस माहौल में जी
दीवार से रिश्ता क़ाएम है साए से रिश्ता टूट गया

जिस के लिए बच्चा रोया था और पोंछे थे आँसू बाबा ने
वो बच्चा अब भी ज़िंदा है वो महँगा खिलौना टूट गया

कब दीदा-ए-गुल हुआ दामन जो जब छोड़ गई गुल को ख़ुशबू
कब आया शजर को होश-ए-नुमू जब पत्ता पत्ता टूट गया