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दिल अकेला ही नहीं रक़्स में जाँ रक़्स में है | शाही शायरी
dil akela hi nahin raqs mein jaan raqs mein hai

ग़ज़ल

दिल अकेला ही नहीं रक़्स में जाँ रक़्स में है

दिल अय्यूबी

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दिल अकेला ही नहीं रक़्स में जाँ रक़्स में है
हम अगर रक़्स में हैं सारा जहाँ रक़्स में है

हैरत-ए-आइना तन्हा न यहाँ रक़्स में है
जाने क्या देख लिया दिल ने कि जाँ रक़्स में है

चश्म-ए-साक़ी में है जिस दिन से मिरा शीशा-ए-दिल
आलम-ए-कार-गह-ए-शीशा-गराँ रक़्स में है

जब से उस नाम का आया है अदा कर लेना
कौन जाने ये हक़ीक़त कि ज़बाँ रक़्स में है

ऐ 'दिल' इस बारगह-ए-हुस्न में हूँ जब से मुक़ीम
इश्क़ शायद कि मिरी तब-ए-रवाँ रक़्स में है