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दिल अगर कुछ माँग लेने की इजाज़त माँगता | शाही शायरी
dil agar kuchh mang lene ki ijazat mangta

ग़ज़ल

दिल अगर कुछ माँग लेने की इजाज़त माँगता

पीरज़ादा क़ासीम

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दिल अगर कुछ माँग लेने की इजाज़त माँगता
ये मोहब्बत-ज़ाद तज्दीद-ए-मोहब्बत माँगता

वक़्त ख़ुद ना-पाएदारी के लिए मशहूर है
ऐसे बे-तौफ़ीक़ से मैं ख़ाक शोहरत माँगता

मैं ने सहरा से तहय्युर-ख़ेज़ हैरत माँग ली
ख़ाक हो जाता अगर तहज़ीब-ए-वहशत माँगता

दिल को ख़ुश आई नहीं ये दौलत-ए-आसूदगी
और कुछ मिल जाती तो ये कुछ और ज़हमत माँगता

हैं ख़ुदावंदान-ए-दुनिया हम तही-दस्तों से हेच
दिल को हसरत थी तो हम जैसों से ख़िलअत माँगता

हो गया होता गिराँ-गोशों से गर मग़्लूब मैं
क्यूँ सुख़न आग़ाज़ करता क्यूँ समाअत माँगता

क्या तअज्जुब था कि इस सौदा-गरी के दौर में
ख़्वाब भी ताबीर हो जाने की क़ीमत माँगता