दिल अगर कुछ माँग लेने की इजाज़त माँगता
ये मोहब्बत-ज़ाद तज्दीद-ए-मोहब्बत माँगता
वक़्त ख़ुद ना-पाएदारी के लिए मशहूर है
ऐसे बे-तौफ़ीक़ से मैं ख़ाक शोहरत माँगता
मैं ने सहरा से तहय्युर-ख़ेज़ हैरत माँग ली
ख़ाक हो जाता अगर तहज़ीब-ए-वहशत माँगता
दिल को ख़ुश आई नहीं ये दौलत-ए-आसूदगी
और कुछ मिल जाती तो ये कुछ और ज़हमत माँगता
हैं ख़ुदावंदान-ए-दुनिया हम तही-दस्तों से हेच
दिल को हसरत थी तो हम जैसों से ख़िलअत माँगता
हो गया होता गिराँ-गोशों से गर मग़्लूब मैं
क्यूँ सुख़न आग़ाज़ करता क्यूँ समाअत माँगता
क्या तअज्जुब था कि इस सौदा-गरी के दौर में
ख़्वाब भी ताबीर हो जाने की क़ीमत माँगता
ग़ज़ल
दिल अगर कुछ माँग लेने की इजाज़त माँगता
पीरज़ादा क़ासीम