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दिल अगर दाग़दार हो जाता | शाही शायरी
dil agar daghdar ho jata

ग़ज़ल

दिल अगर दाग़दार हो जाता

शंकर लाल शंकर

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दिल अगर दाग़दार हो जाता
इक सरापा बहार हो जाता

दामन-ए-सब्र हिज्र के हाथों
क्यूँ न यूँ तार-तार हो जाता

वाए मजबूरियाँ मोहब्बत की
ज़ब्त पर इख़्तियार हो जाता

मैं ने यूँ शिकवा-ए-जफ़ा न किया
वो अगर शर्मसार हो जाता

पास होता अगर वो जान-ए-बहार
बे-नियाज़-ए-बहार हो जाता

इक निगाह-ए-करम जो हो जाती
फिर तो बेड़ा ही पार हो जाता

उन की तिरछी नज़र का क्या कहना
जिस पे पड़ती शिकार हो जाता

उन निगाहों की मस्तियाँ तौबा
मय-कदा शर्मसार हो जाता

प्यार करते हैं वो जिन्हें 'शंकर'
काश उन में शुमार हो जाता