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दिखाते हैं अदा कुछ भी तो आफ़त आ ही जाती है | शाही शायरी
dikhate hain ada kuchh bhi to aafat aa hi jati hai

ग़ज़ल

दिखाते हैं अदा कुछ भी तो आफ़त आ ही जाती है

राधे शियाम रस्तोगी अहक़र

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दिखाते हैं अदा कुछ भी तो आफ़त आ ही जाती है
सँभल कर लाख चलते हैं क़यामत आ ही जाती है

मोहब्बत में हैं सब्र-ओ-शुक्र के हर-चंद हम क़ाइल
मगर कुछ कुछ कभी लब पर शिकायत आ ही जाती है

जो सच पूछो तो हैं आशिक़ भी पैरव नाज़नीनों के
बदन में ना-तवानी से नज़ाकत आ ही जाती है

मजाज़ इक पर्दा-ए-इदराक है तो चश्म-ए-बीना को
किसी सूरत नज़र शक्ल-ए-हक़ीक़त आ ही जाती है

नहीं जज़्ब-ए-दिल-ए-आशिक़ से है मा'शूक़ को चारा
अगर बेदर्द भी हो तो मोहब्बत आ ही जाती है

बुतान-ए-सीम-तन के वस्ल से हम फ़ैज़ पाते हैं
वो आते हैं तो अपने घर में दौलत आ ही जाती है

तिरे अशआ'र-ए-रंगीं से भला फ़रहत न हो 'अहक़र'
कि इन फूलों से ख़ुश्बू-ए-फ़साहत आ ही जाती है