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दीवारों पर साए से लहराते थे | शाही शायरी
diwaron par sae se lahraate the

ग़ज़ल

दीवारों पर साए से लहराते थे

इशरत आफ़रीं

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दीवारों पर साए से लहराते थे
लोग उस की तस्वीरें देखने आते थे

उस बस्ती में मुझ को भी ले जाना था
जिस बस्ती में चाँद-बदन गहनाते थे

उस क्यारी में मेरी तेरी आँखें थीं
जिस क्यारी में तारे बोए जाते थे

फूल कटोरा पानी आँखें और दिए
लोग कहीं वीराने में रख आते थे