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दीवानगी ने ख़ूब करिश्मे दिखाए हैं | शाही शायरी
diwangi ne KHub karishme dikhae hain

ग़ज़ल

दीवानगी ने ख़ूब करिश्मे दिखाए हैं

अयाज़ झाँसवी

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दीवानगी ने ख़ूब करिश्मे दिखाए हैं
अक्सर तिरे बग़ैर भी हम मुस्कुराए हैं

अब ऐ ग़म-ए-ज़माना तिरा क्या ख़याल है
हम अपने साथ ले के ग़म-ए-इश्क़ आए हैं

मय-ख़ाने की तरफ़ जो बढ़े हैं तो होशियार
काबा का रुख़ किया है तो हम डगमगाए हैं

इक सुब्ह-ए-ज़र-निगार की ख़ातिर तमाम रात
हम ने कई चराग़ जलाए बुझाए हैं

हम पर भी रहगुज़ार-ए-मोहब्बत को नाज़ है
हम ने भी कुछ नुक़ूश मिटा कर बनाए हैं

यूँ भी मिली है मुझ को मिरे ज़ब्त-ए-ग़म की दाद
अक्सर वो सर झुकाए हुए मुस्कुराए हैं

हैरत से देखता है ज़माना हमें 'अयाज़'
उस तक पहुँच पहुँच के जो हम लौट आए हैं