दीवानगी-ए-शौक़ का सामाँ सजा के ला
नादाँ गुहर कोई सर-ए-मिज़्गाँ सजा के ला
फ़नकार तू अगर है तो फ़न का दिखा कमाल
तस्वीर-ए-यार ता-हद-ए-इम्काँ सजा के ला
गुलशन पे है ख़िज़ाँ का तसल्लुत तो ग़म नहीं
दिल में फ़रेब-ए-हुस्न-ए-बहाराँ सजा के ला
दे माहताब बन के अंधेरों को रौशनी
मुर्दा दिलों के वास्ते दरमाँ सजा के ला
हम आज तेरी क़ैद से आज़ाद हो गए
ऐ ज़िंदगी अब और ही ज़िंदाँ सजा के ला
फिर ज़ख़्म मुंदमिल हुए जाते हैं ऐ नदीम
तू मेरा मेहरबाँ है नमक-दाँ सजा के ला
आलम का जो 'शफ़ीक़' है रहमत है सर-बसर
उस का ख़याल नज़्द-ए-राग-ए-जाँ सजा के ला
ग़ज़ल
दीवानगी-ए-शौक़ का सामाँ सजा के ला
शफ़ीक़ देहलवी