दीवाना हूँ मुझे न तसाहुल से बाँधिए
हाथों को ख़ूब रिश्ता-ए-काकुल से बाँधिए
अहल-ए-चमन को इतना परेशाँ न कीजिए
बिखरे हुए ये बाल हैं सुम्बुल से बाँधिए
हरगिज़ न होजिए कस-ओ-ना-कस से मुल्तजी
इस ग़म-कदे में ध्यान तवक्कुल से बाँधिए
ये ख़ूब जानता हूँ कसी को करोगे क़त्ल
ख़ंजर कमर में आप तजाहुल से बाँधिए
इस गुलशन-ए-जहान में बद-अहद हैं सभी
बुलबुल यहाँ न अहद किसी गुल से बाँधिए
अहवाल एक है दिल-ए-वहशत-सरिश्त का
या जुज़ से बाँधिए इसे या कुल से बाँधिए
'जोशिश' तू इस तरह की ज़मीनों में याद रख
मज़मूँ जो बाँधिए सो तअम्मुल से बाँधिए
ग़ज़ल
दीवाना हूँ मुझे न तसाहुल से बाँधिए
जोशिश अज़ीमाबादी