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दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश | शाही शायरी
din shaiKH o barhaman ne kiya yar faramosh

ग़ज़ल

दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश
ये सुब्हा फ़रामोश वो ज़ुन्नार फ़रामोश

देखा जो हरम को तो नहीं दैर की वुसअत
इस घर की फ़ज़ा कर गया मेमार फ़रामोश

भूले न मिरे दिल से मिरा मिस्रा-ए-जाँ-काह
नाला न करे मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार फ़रामोश

दिल से न गई आह हवस सैर-ए-चमन की
और हम ने किया रख़्ना-ए-दीवार फ़रामोश

या नाला ही कर मनअ तू या गिर्ये को नासेह
दो चीज़ न आशिक़ से हो यक-बार फ़रामोश

भूला फिरूँ हूँ आप को इक उम्र है लेकिन
तुझ को न किया दिल से मैं ज़िन्हार फ़रामोश

दिल दर्द से किस तरह मिरा ख़ाली हो 'सौदा'
वो ना-शुनवे-ए-हर्फ़ में गुफ़्तार फ़रामोश