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दीजिए रुख़्सत-ए-बोसा नहीं ले बैठेंगे | शाही शायरी
dijiye ruKHsat-e-bosa nahin le baiThenge

ग़ज़ल

दीजिए रुख़्सत-ए-बोसा नहीं ले बैठेंगे

मीर असर

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दीजिए रुख़्सत-ए-बोसा नहीं ले बैठेंगे
प्यारे ये याद रहे जान भी दे बैठेंगे

पा-ए-दीवार खड़े रहने न दीजे बेहतर
और हट कर तिरे कूचा में परे बैठेंगे

बे-सर-ओ-पा हैं कहाँ जाएँगे जूँ नक़्श-ए-क़दम
ख़ाक-ए-पा हम तिरे क़दमों ही तले बैठेंगे

आतिश-ए-इश्क़ तिरे सोख़्तगाँ जूँ शोला
जब तलक हैं कोई आराम लिए बैठेंगे

रू-ब-रू उस के 'असर' आप ब-ईं-ज़िंदा-दिली
कब तलक दिल के तईं मारे हुए बैठेंगे