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दीदा-ओ-दिल मिरी सरकार उठा लाए हैं | शाही शायरी
dida-o-dil meri sarkar uTha lae hain

ग़ज़ल

दीदा-ओ-दिल मिरी सरकार उठा लाए हैं

सफ़दर सलीम सियाल

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दीदा-ओ-दिल मिरी सरकार उठा लाए हैं
हम क़फ़स में भी तिरा प्यार उठा लाए हैं

कैसे छीनेंगे भला हम से मोहब्बत तेरी
हम तिरे कूचा-ओ-बाज़ार उठा लाए हैं

लाख वीरान सही गोशा-ए-ज़िंदाँ लेकिन
हम तो तेरे लब-ओ-रुख़्सार उठा लाए हैं

ज़ंग-आलूद पड़े थे तिरी ग़फ़लत के सबब
हम वही दर्द के हथियार उठा लाए हैं

हम से बाँटी न गईं बच्चों में ख़ुशियाँ अब के
ईद के दिन रसन-ओ-दार उठा लाए हैं

हुस्न-ए-यूसुफ़ तिरी हुर्मत को बचाने के लिए
हम यहाँ मिस्र का बाज़ार उठा लाए हैं

सुर्ख़-रूई की नुमाइश थी सर-ए-बज़्म-ए-जहाँ
मिरे क़ातिल मिरी दस्तार उठा लाए हैं

मैं तो इक उम्र से ख़ामोश पड़ा था 'सफ़दर'
मेरे दुश्मन मिरा पिंदार उठा लाए हैं