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दीदा-ओ-दिल की फ़ज़ा पर ग़म के बादल छा गए | शाही शायरी
dida-o-dil ki faza par gham ke baadal chha gae

ग़ज़ल

दीदा-ओ-दिल की फ़ज़ा पर ग़म के बादल छा गए

मख़मूर सईदी

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दीदा-ओ-दिल की फ़ज़ा पर ग़म के बादल छा गए
उस के जाते ही निगाहों के उफ़ुक़ सँवला गए

दिल तो पत्थर बन गया था मोम किस ने कर दिया
मुद्दतों बा'द आज क्यूँ आँखों में आँसू आ गए

थी सुकूत-ए-दिल से पहले बज़्म-ए-हस्ती पर ख़रोश
फिर वो सन्नाटा हुआ तारी कि हम घबरा गए

बे-हिसी का सर्द मौसम ज़िंदगी पर छा गया
दिल में रौशन थे जो अंगारे वो सब कजला गए

रू-ब-रू इक अजनबी चेहरा सवाली की तरह
आइना देखा तो ऐ 'मख़मूर' हम घबरा गए