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दीद की सद्द-ए-राह है ये मिज़ा | शाही शायरी
did ki sadd-e-rah hai ye mizha

ग़ज़ल

दीद की सद्द-ए-राह है ये मिज़ा

मीर हसन

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दीद की सद्द-ए-राह है ये मिज़ा
ख़ार-ए-पाए-ए-निगाह है ये मिज़ा

नित तक़ातुर ही उस से रहता है
रग-ए-अब्र-ए-सियाह है ये मिज़ा

चश्म मेरी वो बहर हैं मव्वाज
जिस के लब की गियाह है ये मिज़ा

आँखें तेरी वो लड़ने वाली हैं
साथ जिन के सिपाह है ये मिज़ा

हर तरह दिल में खुब रही है तिरे
ख़्वाह बर्छी है ख़्वाह है ये मिज़ा

आँखें मल मल छुपाते हो तुम क्यूँ
देखना क्या गुनाह है ये मिज़ा

दिल में काँटा सा कुछ चुभे है मिरे
कि 'हसन' किस की आह है ये मिज़ा