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दीबाचा-ए-किताब-ए-वफ़ा है तमाम उम्र | शाही शायरी
dibacha-e-kitab-e-wafa hai tamam umr

ग़ज़ल

दीबाचा-ए-किताब-ए-वफ़ा है तमाम उम्र

रिफ़अत सरोश

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दीबाचा-ए-किताब-ए-वफ़ा है तमाम उम्र
इक लम्हा-ए-शुऊर-ए-फ़ना है तमाम उम्र

महरूमियों ने साथ दिया है तमाम उम्र
इक दर्द है कि दिल में रहा है तमाम उम्र

क्यूँ मेरे लब पे आई ग़म-ए-आगही की बात
गुस्ताख़ी-ए-ख़िरद की सज़ा है तमाम उम्र

याद-ए-ख़ुदा में जी न लगा है ये और बात
ख़ौफ़-ए-ख़ुदा तो दिल में रहा है तमाम उम्र

आ ख़ल्वत-ए-'सरोश' में ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ
तेरा ही इंतिज़ार किया है तमाम उम्र