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धूप थे सब रास्ते दरकार था साया हमें | शाही शायरी
dhup the sab raste darkar tha saya hamein

ग़ज़ल

धूप थे सब रास्ते दरकार था साया हमें

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

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धूप थे सब रास्ते दरकार था साया हमें
इक सराब-ए-ख़ुश-नुमा ने और तरसाया हमें

दिल ज़मीं पर उस का चेहरा नक़्श हो कर रह गया
बारहा फिर आइने ने ख़ुद ही ठुकराया हमें

धूप सहरा धूल दरिया ख़ार रस्तों की चुभन
मंज़िलों के शौक़ ने क्या क्या न दिखलाया हमें

मुस्तरद करता गया है दिलरुबा चेहरों को दिल
बा'द उस के कोई चेहरा कब भला भाया हमें

हम कहीं मा'तूब थे मज्ज़ूब थे महबूब थे
जिस की जैसी थी नज़र उस ने वही पाया हमें

दर्द-ओ-राहत वस्ल-ओ-फुर्क़त इश्क़ के हैं रंग-ओ-रूप
जाते जाते उस ने 'ज़ाकिर' ख़ूब समझाया हमें