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धूप शजर को गीत सुनाए आती है | शाही शायरी
dhup shajar ko git sunae aati hai

ग़ज़ल

धूप शजर को गीत सुनाए आती है

वसाफ़ बासित

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धूप शजर को गीत सुनाए आती है
तितली सारे रंग चुराए आती है

उन अशआ'र का ख़ुश होना तो लाज़िम है
जिन अशआ'र पे उन की राय आती है

थोड़ी देर में ट्रेन निकलने वाली है
सुन थोड़ी ही देर में चाय आती है

इस लम्हे पर लग जाते हैं घर को भी
जब जब वो इस सम्त सराए आती है

या'नी उस ने ठान ही ली है जाने की
वो पूरा सामान उठाए आती है

ख़ून बहाती है 'बासित' कोहसारों पर
शाम अँधेरी रात छुपाए आती है