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धूप ने गुज़ारिश की | शाही शायरी
dhup ne guzarish ki

ग़ज़ल

धूप ने गुज़ारिश की

मोहम्मद अल्वी

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धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की

लो गले पड़े काँटे
क्यूँ गुलों की ख़्वाहिश की

जगमगा उठे तारे
बात थी नुमाइश की

इक पतिंगा उजरत थी
छिपकिली की जुम्बिश की

हम तवक़्क़ो' रखते हैं
और वो भी बख़्शिश की

लुत्फ़ आ गया 'अल्वी'
वाह ख़ूब कोशिश की