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धूप में हम हैं कभी हम छाँव में | शाही शायरी
dhup mein hum hain kabhi hum chhanw mein

ग़ज़ल

धूप में हम हैं कभी हम छाँव में

रईस फ़रोग़

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धूप में हम हैं कभी हम छाँव में
रास्ते उलझे हुए हैं पाँव में

बस्तियों में हम भी रहते हैं मगर
जैसे आवारा हवा सहराओं में

हम ने अपनाया दरख़्तों का चलन
ख़ुद कभी बैठे न अपनी छाँव में

किस क़दर नादान हैं अहल-ए-जहाँ
हम गिने जाने लगे दानाओं में

सामने कुछ देर लहराते रहे
फिर वो साहिल बह गए दरियाओं में

इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'
कैसी कैसी अजनबी दुनियाओं में